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रेगर समाज: एक परिचय

रेगर समाज भारत का एक प्रमुख अनुसूचित जाति (Scheduled Caste) समुदाय है, जो मुख्य रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में निवास करता है। यह समाज परंपरागत रूप से चमड़े के कार्य, टेनरी (चमड़ा रंगने), जूता निर्माण और रंगाई-धुलाई जैसे व्यवसायों से जुड़ा रहा है। हालांकि, समय के साथ रेगर समाज ने शिक्षा, व्यापार, सरकारी सेवाओं और अन्य क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण प्रगति की है।

रेगर समाज की उत्पत्ति को लेकर कई मान्यताएँ हैं। एक मान्यता के अनुसार, "रेगर" शब्द संस्कृत शब्द "रंगकार" से आया है, जिसका अर्थ होता है रंगने वाला। पहले ये लोग कपड़े व चमड़े की रंगाई करते थे। वहीं कुछ इतिहासकार मानते हैं कि यह समाज पहले सैनिक या कृषक वर्ग से था, लेकिन सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों के कारण इन्हें चमड़े से जुड़े कार्यों में जाना पड़ा।

ब्रिटिश शासनकाल में इस समाज को "अस्पृश्य" समझा गया और सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ा। लेकिन स्वतंत्रता के बाद संवैधानिक अधिकारों और आरक्षण नीतियों के तहत रेगर समाज ने शिक्षा और नौकरी के क्षेत्र में कई उपलब्धियाँ प्राप्त कीं।

रेगर समाज में एकता (एकजुटता) का महत्व

एकता किसी भी समाज की शक्ति होती है। जब समाज संगठित होता है, तभी वह अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर सकता है, अपनी समस्याओं को सामने ला सकता है और सरकार या प्रशासन से अपने हकों की मांग कर सकता है।

रेगर समाज में शिक्षा की भूमिका

शिक्षा समाज को अज्ञानता, गरीबी और पिछड़ेपन से बाहर निकालने का सबसे शक्तिशाली माध्यम है। रेगर समाज के लोग अब यह समझने लगे हैं कि यदि अगली पीढ़ी को आगे बढ़ाना है, तो शिक्षा पर सबसे अधिक ध्यान देना होगा।

“आपकी आवाज़ ही हमारे समाज की दिशा तय करती है – संपर्क करें और बदलाव का हिस्सा बनें!”

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